Thursday 6 June 2019

ट्रांस साइबेरियन रेलवे ( Trans Siberian Railway)

                     ट्रांस साइबेरियन रेलवे


ट्रांस साइबेरियन रेलमार्ग विश्व का सबसे लंबा रेलमार्ग है जिसका निर्माण कार्य 18 91 ईस्वी से 1916 ईस्वी तक चला इसका निर्माण रूस के राजशाही शासन काल के समय हुआ ट्रांस साइबेरियन रेलमार्ग 9560 किलोमीटर लंबा है इस रेलवे का ट्रेक गेज 1520 एमएम है इस रेलवे का संचालन रशियन रेलवे द्वारा किया जाता है यह रेल मार्ग रूस के पश्चिम भाग में स्थित सेंट पीटर्सबर्ग ( लेनानग्राद)  से एशियाई रूस के पूर्व में स्थित बलाडीवोसटक तक लंबा है यह दोहरे पथ से युक्त विद्युतीकृत पार महाद्वीपीय रेलमार्ग एशिया का महत्वपूर्ण रेलमार्ग है इस रेलमार्ग ने एशियाई प्रदेश को पश्चिमी यूरोपीय बाजारों से जोड़ने का महत्वपूर्ण कार्य किया है 


              ट्रांस साइबेरियन रेल मार्ग का मानचित्र


यह रेल मार्ग यूराल पर्वत और युराल की नदियों से होकर गुजरता है इसके साथ यह मंगोलिया से होता हुआ चाइना में भी प्रवेश करता है यह रेल मार्ग मास्को ,टूला, टयूमिन,कजान, ओमस्क नोवोसिबिस्रक,चिता,खबरोवसक आदि शहरों से होकर गुजरता है इस रेल मार्ग के निर्माण से विशेषकर साइबेरिया का विकास हुआ है इस रेल मार्ग का व्यापारिक एवं आर्थिक महत्व बहुत ज्यादा है इस रेलमार्ग को सन 1945 में डबल ट्रेक कर दिया गया यह रेल मार्ग साइबेरिया के आर-पार जाने के कारण ट्रांस साइबेरियन रेलमार्ग के नाम से जाना जाता है इस रेल मार्ग के प्रारंभ से अंत तक पूरी यात्रा करने में कम से कम 1 सप्ताह का समय लगता है इस प्रकार ट्रांस साइबेरियन रेलमार्ग विश्व के सबसे लंबी रेल मार्ग के साथ-साथ विश्व का सबसे उपयोगी रेल मार्ग भी बन जाता है पर्यटन दृष्टि से देखा जाए तो ट्रांस साइबेरियन रेलमार्ग का महत्व ज्यादा है इसमें बैठकर आप 9560 किलोमीटर लंबी यात्रा का आनंद ले सकते हैं इस रेल मार्ग में कई खूबसूरत हिल स्टेशन तथा खूबसूरत जगह पर बने हुए रेलवे सटोप जो पर्यटन की दृष्टि से बहूत महत्वपूर्ण है;

Wednesday 5 June 2019

पनामा नहर(panama canal)

                     पनामा नहर परिचय



 पनामा नहर एक मानव निर्मित जलमार्ग है जिसे अंतरराष्ट्रीय व्यापार में जलयान संचालन के लिए उपयोग किया जाता है पनामा नहर पूर्व में स्थित अंटार्कटिक महासागर को पश्चिम में स्थित  प्रशांत महासागर से जोड़ती है पनामा नहर जल पास या जल लोक पद्धति पर आधारित है पनामा नहर का संचालन पनामा नहर प्राधिकरण द्वारा किया जाता है यह नहर संयुक्त राज्य अमेरिका के स्वामित्व वाला जल मार्ग है पनामा नहर मध्य अमेरिका के पनामा देश में स्थित है यह नहर पनामा जलडमरूमध्य को काटकर बनाई गई है

                 पनामा नहर का इतिहास

पनामा नहर के निर्माण का इतिहास बड़ा ही रोचक है इसका सर्वप्रथम प्रयास स्पेन के राजा के आदेशानुसार 1531 इश्यू में स्पेन द्वारा शुरू किया गया था लेकिन स्पेन को इस नहर के निर्माण में सफलता नहीं मिली स्पेन के बाद स्कॉटलैंड द्वारा 1658 में इस नहर के निर्माण के लिए पुनः प्रयास किया गया और उन्हें भी सफलता हासिल नहीं हुई स्कॉटलैंड के बाद एक जनवरी 18 सो 81 ईस्वी में फ्रांस द्वारा पनामा के निर्माण के लिए जोर-शोर से प्रयास किए गए लेकिन वह भी पनामा का निर्माण नहीं कर पाए

                  पनामा नहर का निर्माण

पनामा नहर के निर्माण का सफल प्रयास सूक्त राज्य अमेरिका द्वारा 1940 में शुरू किया गया इस नहर के निर्माण के मुख्य अभियंता जॉन फीड वेलाख, जॉन  फैक सटीवेस ,जॉर्ज वाशिगटन गोथलस थे सन 1914 ईस्वी में इस नहर का निर्माण पूरा कर लिया गया जिसे 15 अगस्त 1914 को व्यापार के लिए खोल दिया गया मानव निर्मित यह नहर दुनिया में किसी अजूबे से कम नहीं है क्योंकि इससे पहले किए गए सभी प्रयास किसी ना किसी तरह से बुरी तरह से विफल हुए थे लेकिन संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा पूरे डाटा एनालिसिस तथा पूरी रणनीति के साथ किए गए कार्य से य संसार का महत्वपूर्ण जल मार्ग बनकर तैयार हुआ

                   पनामा नहर की विशेषता

पनामा नहर 82 किलोमीटर लंबी तथा 90 मीटर चौड़ी है इसकी न्यूनतम गहराई 12 मीटर एवं सबसे बड़ा समुद्री भाग समुद्र तल से 26 मीटर ऊंचा है इस नहर प्रणाली में तीन लोक प्रणाली काम करती है
1- गा तुन लॉक्स    अटलांटिक तट के समीप
2- पेड्रोमिकिट लाँक- मधय मे
3-मीरा पलास॓ लाॅक - प्रशांत तट के समीप
इन लुक्स का निर्माण पर्वतीय भूमि को पार करने के लिए किया गया है 

                   पनामा नहर का व्यापारिक लाभ




पनामा नहर मार्ग से होकर जाने पर न्यूयॉर्क एवं सेन फ्रांसिस्को नगरों की दूरी और अंतरिक मार्ग की तुलना में लगभग 13000 किलोमीटर कम हो गई है पनामा नहर मार्ग से होकर जाने पर न्यू ऑरलियंस तथा सेन फ्रांसिस्को नगरों की दूरी लगभग 9000 किलोमीटर तथा न्यूयॉर्क से सिवनी की दूरी लगभग 6500 किलोमीटर तथा बाल प्राइस जो 18 चिल्ली से न्यूयॉर्क की दूरी में लगभग 6000 किलोमीटर की बचत होती है इस नहर द्वारा व्यापार में बहुत अधिक वृद्धि हुई है इसके द्वारा अंध महासागर एवं प्रशांत महासागरों के तटीय देशों के बीच व्यापार बहुत बढ़ गया है इस नहर का आर्थिक महत्व स्वेज नहर की अपेक्षा कम है फिर भी दक्षिण अमेरिका की अर्थव्यवस्था में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका है इस नहर द्वारा कैलिफोर्निया से पेंट्रोल चिल्ली ससुरा में तांबा चीन सिंचाई एवं रेशम ऑस्ट्रेलिया न्यूजीलैंड से मक्खन पनीर एवं चमड़ा पूर्व अमेरिका से तैयार माल कपड़ा मशीन दवाइयां आदि महासागरीय देशों को भेजी जाती है इससे पश्चिमी एवं पूर्वोत्तर से ऑस्ट्रेलिया न्यूजीलैंड दक्षिण अमेरिका और जापान के बंदर गांव की दूरी कम हुई है

Tuesday 4 June 2019

भारतीय कृषि(Indian Agriculture)

             भारतीय कृषि का परिचय

प्राचीन काल से ही भारत एक कृषि प्रधान देश रहा है ईसा पूर्व ही सिंधु घाटी सभ्यता के परमाणु के अनुसार उस समय ही भारत में कृषि कार्य प्रमुखता से किया जाता था कुछ ईसा पूर्व के कृषि आधारित ग्रंथ जिनसे यह प्रमाण मिलता है कि भारत हमेशा से एक कृषि प्रधान देश रहा है रोशनी विद्वान वह भी लोगों ने सन 1951 में भारत के बारे में कृषि के उद्योग केंद्र के रूप में वर्णन किया है भारत की 54 पॉइंट 6 प्रतिशत जनसंख्या प्रत्यक्ष रूप से कृषि पर निर्भर है मानसून पर निर्भरता के कारण भारतीय कृषि और अर्थव्यवस्था को मानसून का जुआ कहते हैं देश के कुल निर्यात मूल्य का लगभग 12 पॉइंट 7 प्रतिशत कृषि उत्पादों से ही प्राप्त होता है भारत की अर्थव्यवस्था समाज एवं संस्कृति का मूल आधार कृषि है 


भारत के कुल क्षेत्रफल के 40 पॉइंट 5 प्रतिशत भाग पर कृषि कार्य होता है भारतीय कृषि रोजगार प्रदान करने वाली उद्योगों को कच्चा माल प्रदान करने वाली राष्ट्रीय आय को बढ़ाने वाली पोस्ट पदार्थों का उत्पादन देने वाली तथा विदेशी मुद्रा की प्राप्ति में पूर्ण योगदान देने वाली है

                      प्राचीन कृषि ग्रंथ

कृष्ण पाराशर कृषि संग्रह पाराशर तंत्र वृक्ष आयुर्वेद रचयिता (सुरपाल) विश्व वल्लभ रचयिता (चक्रपाणि मिश्र) उपवन विनोद रचेता (सारंगधर )आदि ग्रंथ प्रमुख है जिनमें भारतीय कृषि से संबंधित दुर्लभ जानकारियां मिलती है

                   भारत की प्रमुख कृषि फसलें

                             गेहू(wheat)



गेहूं भारत की प्रमुख खाद्य फसल है भारत में विश्व में गेहूं उत्पादन का 11 पॉइंट 7% उत्पादन होता है भारत में कुल कृषि भूमि के 33% भाग पर गेहूं बोया जाता है सन 2014 15 में प्रति हेक्टर गेहूं का उत्पादन प्रति हेक्टेयर 88 पॉइंट 900000 मिलीयन टन था उत्तर प्रदेश पंजाब हरियाणा राजस्थान मध्य प्रदेश बिहार पश्चिम बंगाल कर्नाटक महाराष्ट्र गुजरात तमिलनाडु आंध्र प्रदेश जैसे राज्य प्रमुख उत्पादक राज्य हैं

                          चावल(rice)



दुनिया का 19% चावल भारत में ही पैदा होता है वर्ष 2015 में भारत के खदानों के कुल क्षेत्रफल के 35 पॉइंट 9 प्रतिशत भाग पर सिर्फ चावल ही बोया गया था चावल एक उष्णकटिबंधीय पौधा है जिसके लिए जनोट एवं चिकनी मिट्टी उपयुक्त है 100 से 200 सेंटीमीटर वर्षा इसके लिए आदर्श वर्षा है चावल की अनेक किस्में है जिनमें बासमती जमुना परी ir8 एवं शरावती प्रमुख है पश्चिम बंगाल उत्तर प्रदेश आंध्र प्रदेश पंजाब बिहार तमिलनाडु छत्तीसगढ़ मध्य प्रदेश उड़ीसा राजस्थान असम केरल भारत के प्रमुख चावल उत्पादक राज्य हैं

                          कपास(cotton)


कपास का जन्म स्थान भारत देश है कपास उपोषण तथा उष्णकटिबंधीय पौधा है भारत में विश्व की 12% कपास पैदा की जाती है कपास की फसल हेतु 50 से 100 सेंटीमीटर वर्षा तथा काली मिट्टी सर्वाधिक उपयुक्त रहती है कपास का सर्वाधिक उपयोग वस्त्र बनाने में किया जाता है भारत में गुजरात महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश तेलंगाना पंजाब हरियाणा राजस्थान तमिलनाडु कर्नाटक मध्य प्रदेश केरल उड़ीसा हिमाचल प्रदेश जम्मू कश्मीर आसन एवं बिहार में कपास का सर्वाधिक उत्पादन होता है गुजरात कपास उत्पादन में भारत में प्रथम स्थान है प्रति हेक्टेयर उत्पादन में पंजाब प्रथम स्थान पर है बीटी कॉटन कपास की एक उन्नत किस्म मानी जाती है

                        गन्ना(sugarcane)



कपास की तरह गन्ने का जन्मस्थान भी भारत ही है गन्ना एक व्यापारिक फसल है विश्व का 35% गणना भारत में उत्पन्न होता है गन्ना अयन वृत्तीय पौधा है यह 20 डिग्री से 30 डिग्री तापमान एवं 100 से 200 सेंटीमीटर वर्षा वाले क्षेत्र में अधिक अच्छी स्थिति में उपज देता है उत्तरी भारत गन्ने का प्रमुख उत्पादक क्षेत्र है गंगा की ऊपरी ओएमजी वृत्तीय गति सर्वाधिक गन्ना पैदा करने वाले क्षेत्रों में से हैं भारत में उत्तर प्रदेश महाराष्ट्र तमिलनाडु कर्नाटक आंध्र प्रदेश गुजरात पंजाब हरियाणा राजस्थान बिहार तथा उड़ीसा प्रमुख गन्ना उत्पादक राज्य है गन्ना उत्पादक के लिए अनुकूल जलवायु समुद्र तटीय जलवायु है इसमें प्रति हेक्टर गन्ने का उत्पादन बहुत ही अच्छा मिलता है

                                 चाय(tea)



चाय एक महत्वपूर्ण वेबसाइट फसल है जो भारत देश में प्रमुख पेय पदार्थ के रूप में प्रचलित है क्षेत्रफल तथा उत्पादन की दृष्टि से भारत विश्व में चाय उत्पादन सर्वाधिक करता है निर्यात में भारत का दूसरा स्थान है चाहे एक उसने कटिबंधीय पौधा है जो प्रवाहित धरातल 200 से 500 सेंटीमीटर तथा 25 सेंटीमीटर तापमान चाय उत्पादन के लिए अनुकूल वातावरण है भारत में असम पश्चिम बंगाल तमिलनाडु केरल यह राज्य देश के कुल उत्पादन का 95% चाय उत्पादित करते हैं अन्य चाय उत्पादक राज्यों में हिमाचल प्रदेश तथा भारत के पूर्वी राज्य शामिल है

                      सब्जी(vegitable)



 के साथ-साथ भारत में सब्जियों का भी उत्पादन प्रचुर मात्रा में किया जाता है भारत में परंपरागत सब्जियों के साथ-साथ आधुनिक सब्जियों का उत्पादन भी बड़े स्तर पर किया जाता है सब्जी उत्पादन में भारत की प्रमुख सब्जियां टमाटर हरी मिर्च शिमला मिर्च आलू गोभी बोर्कली मटर लोकी तोरयो टिनसी गवार फली आदि है सब्जियोंों के उत्पादन मे भारत विश्व में दूसरे स्थान पर है वर्तमान समय मेंं भारत में बागानी की फसलों का उत्पादन प्रचुर मात्रा में किया जाता है मटर उत्पादन मेंं भारत विश्व मेंपहला स्थान रखता है बैंगन पता गोभी उत्पादन में दूसरा स्थान तथा आयु एवं टमाटर उत्पादन में तीसरा स्थान रखता है

                                 फल




फल उत्पादन की दृष्टि से भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा फल उत्पादक देश है भारत में सभी प्रकार के फल जैसे  चीकू आम केला वनस्पति सेब खरबूजा स्ट्रॉबेरी अनार अंगूर आदि प्रमुख फलों का उत्पादन किया जाता है




उर्जा संसाधन( एनर्जी रिसोर्सेज=energy resources)

                             

            परिचय( introduction)

ऊर्जा  संसाधन  वह माध्यम है  जिनके द्वारा मानव अपने दैनिक कार्य तथा औद्योगिक कार्य  के लिए जरूरी ऊर्जा का किसी न किसी रूप में  उत्पादन करता है  ऊर्जा संसाधन ही सर्वांगीण विकास का मूल आधार है आधुनिक युग में ऊर्जा के साधन ही किसी भी देश की आर्थिक प्रगति का मुख्य आधार है और ऊर्जा स्रोतों को परंपरागत एवं गैर परंपरागत ऊर्जा स्रोतों में बांटा गया है

                       ऊर्जा के परंपरागत स्रोत
  •  कोयला    =  कोयले को काला सोना तथा शक्ति का प्रतीक कहा जाता है चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका विश्व के सबसे बड़े कोयला उत्पादक देश हैं कार्बन की मात्रा के आधार पर कोयला अंतरा साइड  Bittu means लिग्नाइट Peat में विभक्त किया जाता है उत्पादन और उपभोग की दृष्टि से भारत के महत्वपूर्ण कोयला उत्पादक क्षेत्र गोंडवाना क्रम की चट्टानों में मिलते हैं कोयले का उपयोग बीते दशकों में भारी मात्रा में किया जाता था जैसे ट्रेन संचालन तथा विद्युत ऊर्जा उत्पादन एवं घरेलू कार्यों के लिए प्रमुखता से इसका उपयोग होता था लेकिन इस समय ऊर्जा के नए संसाधनों के आविष्कार के कारण कोयले का प्रयोग अपेक्षाकृत संसार में कम होने लगा है


               कोयले द्वारा ऊर्जा उत्पादन  चित्र



  • पेट्रोलियम    पेट्रोल का शाब्दिक अर्थ चट्टानों से प्राप्त होने वाला तेल है प्राकृतिक तेल की खोज के लिए पूरे विश्व में समय-समय पर कई तरीके के अभियान चलाए गए हैं जिसमें विश्व समुदाय को सफलता भी प्राप्त हुई है 
  • आधुनिक युग में विश्व की मानव जाति के लिए पेट्रोलियम ऊर्जा का सबसे ज्यादा काम में लिया जाने वाला स्रोत है जैसे किसी भी तरह की गाड़ी तथा इसमें के उच्च स्तर के विद्युत उत्पादन केंद्र भी पेट्रोलियम से चलते हैं

  • जल विद्युत  हाइड्रो इलेक्ट्रिसिटी     ऊर्जा के सभी रूपों में विद्युत शक्ति सबसे व्यापक और शहद हैं विद्युत शक्ति विश्व के सभी ऊर्जा स्रोतों में सबसे कम पॉल्यूशन वाली ऊर्जा स्रोत है विद्युत शक्ति का निर्माण कई रूप से किया जाता है 
जिनमें सबसे सस्ती जल विद्युत पदार्थ हाइड्रो इलेक्ट्रिसिटी पद्धति है इस पद्धति के अंतर्गत पानी को डैम बनाकर ऊंचाई से गिराया जाता है तथा उस गिरने वाले पानी के साथ एक जनरेटर से कनेक्ट चलती है और इस तरह से विद्युत शक्ति का उत्पादन होता है

  . आणविक ऊर्जा  atomic energy      यह ऊर्जा प्रणाली नाभिकीय विखंडन प्रणाली पर आधारित है इस प्रणाली के अंतर्गत शक्तिशाली परमाणु पदार्थों का प्रयोग विद्युत शक्ति उत्पादन में किया जाता है

इस प्रणाली की विशेषता यह है कि यह महंगी जरूर है पर काफी गुणवत्ता और बड़े स्तर पर विद्युत उत्पादन करने वाली प्रणाली है

                ऊर्जा के गैर परंपरागत संसाधन

सौर ऊर्जा    इस प्रणाली में सूर्य से फोटोवॉल्टिक प्रणाली के माध्यम से ऊर्जा प्राप्त की जाती है 

इसका उपयोग ज्यादातर लोग अपने घर के देनी कार्यों की पूर्ति के लिए

 पवन ऊर्जा     प्रकृति पर मौजूद प्राकृतिक हवा की गति से टरबाइन को गतिमान करते हुए उस टरबाइन से जुड़े जनरेटर के माध्यम से विद्युत शक्ति प्राप्त की जाती है

यह विद्युत शक्ति प्रणाली विश्व की सबसे सस्ती और सरल विद्युत प्रणाली है लेकिन इसमें सबसे बड़ी समस्या इसका कम उत्पादन है

भूतापीय ऊर्जा

 ज्वारीय उर्जा

 जैविक ऊर्जा    जैसे कृषि अवशेष नगर पालिका द्वारा एकत्रित अपशिष्ट कृषि भवन अपशिष्ट औद्योगिक व अन्य अपशिष्ट से प्राप्त उर्जा को जैव ऊर्जा कहा जाता है इस जैविक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा ताप ऊर्जा तथा खाना पकाने वाली गैस के रूप में परिवर्तित किया जा सकता है इस ऊर्जा के उत्पादन में एक और अपशिष्ट हुए कूड़ा करकट का सुचारू रूप से समाधान होता है तो दूसरी ओर इसे उपयोगी ऊर्जा की भी प्राप्ति होती है जैविक ऊर्जा ग्रामीण क्षेत्रों के आर्थिक जीवन को बेहतर बनाने में सहयोगी हो रही है साथ ही पर्यावरण प्रदूषण को कम करने तथा जलावन लकड़ी की बचत करने में भी महत्वपूर्ण योगदान दे रही है

भारतीय जनसंख्या=Indian population

                      भारतीय जनसंख्या

भारत देश का क्षेत्रफल विश्व क्षेत्रफल का 2 पॉइंट 4 प्रतिशत है जबकि भारत की जनसंख्या विश्व की कुल जनसंख्या की 17 पॉइंट 5 प्रतिशत है भारत की प्रथम जनगणना अट्ठारह सौ बोतल इसलिए में हुई थी परंतु संपूर्ण भारत की सर्वमान्य जनगणना 1821 सी ईस्वी में हुई थी लेकिन इस समय भारतीय जनसंख्या से संबंधित आंकड़े 1901 ईस्वी से 2011 ईस्वी तक उपलब्ध है जनसंख्या की दृष्टि से विश्व में भारत का दूसरा स्थान है प्रथम स्थान चीन गणराज्य का है भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है

                          जनसंख्या की परिभाषा
किसी भी देश या राज्य की जनसंख्या से अर्थ उस देश या राज्य में निवास करने वाले सभी मानव जाती की कुल संख्या से है

भारत की दशकीय जनसंख्या वृद्धि तथा वृद्धि दर 1901                    से 2011 तक की सारणी
2011 की जनगणना के अनुसार भारत की कुल आबादी 121 पॉइंट 02 करोड़ थी जो बढकर 2018 तक लगभग 1 पॉइंट 340 बिलियन हो गई! 2011 के बाद भारत की जनसंख्या 1 पॉइंट 1 प्रतिशत वार्षिक दर से बढ़ रही है 2021 तक यह जनसंख्या 140 करोड़ होने की संभावना है

भारतीय जनसंख्या के  वृद्धि काल का चार भागों में                                          विभाजन
         भारतीय जनसंख्या का स्थानिक विवरण चित्र


    1      सन उन्नीस सौ एक से 1921 के 20 वर्षों की अवधि में भारत की जनसंख्या के 20 पॉइंट 85 करोड़ से बढ़कर 25 पॉइंट 13 करोड़ कुल 1 पॉइंट 27 करोड की वर्दी हुई इस समय में अकाल महामारी तथा खदान की कमी के कारण 1911 से 21 के दशक में उच्च मृत्यु दर रही जिससे देश की जनसंख्या में ऋण आत्मक वर्दी हुई

2    सन 1921 के बाद भारत में जनसंख्या में सतत रूप से वृद्धि होने लगी जसके कारण सन 1921 को महान जनसंख्या वृद्धि कहा जाता है सन 1921 से 51 की अवधि में भारत की जनसंख्या 25 पॉइंट 13 करोड़ से बढ़कर 36 पॉइंट 11 करोड हो गई थी इस प्रकार तीन दशकों में भारत की जनसंख्या में केवल 11 करोड की वर्दी हुई उक्त अवधि में मृत्यु दर में कमी तथा जन्म दर पहले जैसी रहने के कारण जनसंख्या में धीमी गति से वर्दी होती रही थी

           भारतीय जनसंख्या का घनत्व विवरण चित्र

3  1951के बाद से भारत की जनसंख्या में तीव्र गति से बढोतरी प्रारंभ हो गई इस कारण सन 1951 को भारत में द्वितीय जननांग कीय विभाजक वर्ष कहा जाता है उक्त अवधि में भारत की जनसंख्या 36 point एक करोड़ से बढ़कर 68पॉइंट 3 हो गई थी तथा अर्थ 1951 से 1980 के बीच 30 वर्षों में भारत की जनसंख्या की वृद्धि दर सर्वाधिक रही तथा 1961 से 1971 के दशक में सर्वाधिक जनसंख्या वृद्धि दर 248 % रही !मृत्यु दर में गिरावट तथा जन्म दर में  वृद्धि अवधि में जनसंख्या की वृद्धि के लिए प्रमुख रूप से उत्तरदाई रही

4  सन 1981 के बाद भारत में जनसंख्या की वृद्धि दर में गिरावट का रुक प्रारंभ हो गया जो सन् 1981 से 91 में जनसंख्या की औसत वार्षिक गति भर्ती 2 पॉइंट 14% थी जो सन 1991 से 2001 में घटकर 1 पॉइंट 95% हो गई तथा सन् 2001 से 2011 के दशक में घटकर 1 पॉइंट 64% रह गई जनसंख्या वृद्धि दर की परवर्ती परिवार नियोजन कार्यक्रम की सफलता तथा देश में छोटे परिवारों के प्रति आम व्यक्ति का बढ़ता रुझान है






x

ओजोन परत का क्षरण=ozon layer depletion

          ओजोन परत के क्षरण का विवरण

 पृथ्वी से 15 से 35 किलोमीटर की ऊंचाई पर समताप मंडल में ओजोन गैस की एक परत बनी हुई है जिसे ओजोन परत कहते हैं ओजोन परत सूर्य के प्रकाश की उच्च ऊर्जा युक्त अल्ट्रावायलेट किरणों को पृथ्वी पर पहुंचने से रोकती है जिसके कारण पृथ्वी पर मौजूद मानवीय एवं अन्य जीव धारियों के स्वास्थ्य की रक्षा होती है इस प्रकार ओजोन परत पृथ्वी के लिए एक सुरक्षा कवच का काम करती है



ओजोन परत द्वारा सूर्य की अल्ट्रावायलेट किरणों से                 पृथ्वी के बचाव को दिखाता हुआ चित्र

पिछले कुछ सालों से यह प्राय देखने में आया है तथा शोध द्वारा पाया गया है कि ओजोन परत में ओजोन गैस की कुल मात्रा में प्रति दशक लगभग 4% की कमी आ रही है जिसके कारण ओजोन परत में अंटार्कटिका महाद्वीप ऑस्ट्रेलिया न्यूजीलैंड दक्षिण अफ्रीका दक्षिण अमेरिका आदि देशों के ऊपर छेद बन गया है बढ़ते समय के साथ-साथ वर्तमान में उत्तरी ध्रुव पर बसंत ऋतु में इसी प्रकार के छेद ओजोन परत में प्राय देखने को मिलते हैं

                 ओजोन परत के क्षरण  के कारण

पिछले 50 से 60 वर्षों में मानव ने प्रकृति के संतुलन को वायुमंडल में हानिकारक गैस तथा रसायन को फैलाकर अस्त-व्यस्त कर दिया है जिससे जीवन रक्षक ओजोन परत को भारी नुकसान हो रहा है वह जून परत में ओजोन गैस की कमी तथा विनाश के लिए प्रमुख रूप से एलोजेनिक के से उत्तरदाई है इन देशों में क्लोरोफ्लोरोकार्बन क्लोरो ब्रोमीन मिथाइल क्लोरोफॉर्म तथा कार्बन टेट्राक्लोराइड आदि के से तथा रसायन प्रमुख है इन रसायन तथा गैसों से ओजोन परत में एक छेद बन रहा है जिसके कारण सूर्य की अल्ट्रावायलेट किरणें सीधी धरती पर पहुंच रही है और यह किरणें मनुष्य तथा पृथ्वी के समस्त जीवो के लिए हानिकारक है
ओजोन परत मैं क्लोरीन के एक परमाणु के मिश्रण से 100000 ओजोन अनु नष्ट हो जाते हैं क्लोरीन के परमाणु क्लोरोफ्लोरोकार्बन के विघटन से निर्मित होते हैं  




ओजोन परत के क्षरण का का रसायनिक सूत्र इस प्रकार है
CFCI3+hv -CFCI2+CI( chlorine)
                   ( chlorofluorocarbon)
क्लोरीन के साथ साथ ब्रोमीन के परमाणु भी और जॉन परत के अनेक अनु को मार देते हैं जिसके कारण ओजोन परत पर वह जून की मात्रा में क्रमश कमी आती रहती है तथा ओजोन परत में शरण की प्रक्रिया और तेजी से बढ़ती जाती है

              ओजोन परत के क्षरण के प्रभाव

  1. ओजोन परत के नुकसान से विश्व में त्वचा कैंसर तथा आंखों का रोग में मोतिया बिंद की संख्या में वृद्धि हो रही है
  2.  सूर्य की पराबैंगनी किरणों के प्रभाव से मानव सहित अन्य जीव धारियों की रोग प्रतिरोधक क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है
  3. भूमध्य रेखीय सत्र में ओजोन में नुकसान के कारण औसत तापमान में लगातार वृद्धि हो रही है जिसके कारण वहां के निवासियों के शारीरिक व मानसिक विकास पर खतरनाक असर पड़ा है
  4. तेरा बेंगनी किरणों के प्रभाव से सागरीय जल के पादप पलवक लगभग समाप्त हो रहे हैं जिसके कारण समुद्री विभागों की खाद श्रंखला पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है
5  .ओजोन परत में क्षति के कारण सूर्य की अल्ट्रावायलेट किरणों का सीधा पृथ्वी पर आने से पृथ्वी पर मौजूद कृषि फसलों के उत्पादन तथा गुणवत्ता दोनों में लगातार गिरावट आ रही है
6. ओजोन परत के क्षरण से पृथ्वी का तापमान लगातार बढ़ रहा है और वैज्ञानिकों के अनुमान के मुताबिक अगर इसी तरह से ओजोन परत का क्षरण होता रहा तो 1 दिन अत्यधिक गर्मी से विश्व का ज्यादातर ग्लेशियर पिघल कर पृथ्वी पर जल वृष्टि की स्थिति पैदा कर देगा

         ओजोन परत के क्षरण को रोकने के प्रयास

विश्व समुदाय द्वारा समय-समय पर ओजोन परत के क्षरण को रोकने के लिए संपूर्ण विश्व का ध्यान इस ओर किया गया संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा 16 सितंबर को ओजोन परत संरक्षण दिवस के रूप में मनाने के लिए निर्धारित किया गया है इसके अलावा समय-समय पर विश्व समुदाय ने पर्यावरण के संरक्षण तथा विशेष रूप से ओजोन परत के संरक्षण के लिए भी कई सेमिनार तथा सम्मेलन आयोजित किए हैं

       ओजोन परत के क्षरण को रोकने के उपाय
ओजोन परत के क्षरण को रोकने के लिए मानव द्वारा पृथ्वी पर इस्तेमाल किए जाने वाली हलोजेनिक गैसों को पूर्ण रूप से प्रतिबंधित किया जाना चाहिए मानव द्वारा प्रयोग की जाने वाली  गैसे  क्लोरीन ब्रोमीन मिथाइल क्लोरो क्लोरोफॉर्म तथा कार्बन टेट्राक्लोराइड को पूर्णत प्रतिबंधित किया जाना पड़ेगा जिससे की इनका वायुमंडल में रिसाव ना हो और ओजोन परत का छेद और बड़ा ना होकर जिस स्थिति में है उसी में रहे या फिर उसी स्थिति में सुधार की गुंजाइश भी हो सकती है

Sunday 2 June 2019

अम्लीय वर्षा=Acid Rain

   अम्लीय वर्षा के कारण प्रभाव और संभावित                                  समाधान



वायुमंडल में उपस्थित सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) गैस जो वायु वायुमंडल में मौजूद पानी (H2O)तथा नाइट्रोजन ऑक्साइड (NO2) से प्रतिक्रिया कर  सल्फ्यूरिक अम्ल H2SO4 तथा नाइट्रिक अम्ल HNO3 का निर्माण करती है  जिसके कारण होने वाली वर्षा के पानी का पीएच मान 5 पॉइंट 3 से 6 पॉइंट जीरो की सामान्य स्थिति से कम हो जाता है इस तरह की वर्षा को अम्लीय वर्षा कहा जाता है
 

 वायुमंडल में अम्लीय वर्षा का प्रमुख कारण सल्फर डाइऑक्साइड गैस को छोड़े जाने के प्रमुख स्रोत

  1. ऑटोमोबाइल तथा स्वचालित वाहन
  2. कोयला आधारित ताप विद्युत गृह
  3. खनिज तेल शोधनशाला
4  .जीवाश्म ईंधन जैसे कोयला पेट्रोलियम तथा लकड़ी का दहन

1.अम्लीय वर्षा के प्रभावअम्लीय जल के प्रभाव से मिट्टी की अम्लीय  स्तर बढ़ जाता है परिणाम स्वरूप मिट्टी के खनिज में पोषक तत्व नष्ट हो जाता है जिससे मिट्टी की उत्पादन क्षमता कम होती है

2.अम्लीय वर्षा के उत्तरदाई कारक है हवा के साथ हजारों किलोमीटर दूरी तक बह जाते हैं तथा वहां आद्रता के अनुसार अम्लीय वर्षा के रूप में बरसते हैं
3.अम्लीय वर्षा से पेयजल भंडार दूषित हो जाते हैं
4.मानव शरीर में सांस और चमड़ी तथा आंखों की जलन से संबंधित समस्याएं उत्पन्न होने लगती है
5.वृक्षों की पत्तियों के स्टोमेटा बंद हो जाते हैं जिससे इन वृक्षों की अनेक जैविक क्रियाएं मंद पड़ जाती है

और इस प्रकार अम्लीय वर्षा संयोग वनों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है
6.अम्लीय वर्षा से नदियों तथा झिलो का पानी दूषित होने के कारण इनमें रहने वाले जलीय जीवो पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है नॉर्वे तथा स्वीडन की अनेक जिलों में अम्लीय वर्षा के प्रभाव से अधिकांश जलीय जीव समाप्त हो गए हैं
  7.पत्थर तथा संगमरमर का शरण शुरू हो जाता है ताजमहल जैसी बड़ी इमारत भी अम्लीय वर्षा के कारण अपना धुंधला रंग छोड़ने लगी है

                   अम्लीय वर्षा के संभावित समाधान
  • अम्लीय वर्षा के लिए उत्तरदाई सल्फर डाइऑक्साइड तथा नाइट्रोजन ऑक्साइड के उत्सर्जन को प्रभावी ढंग से नियंत्रित किया जाना चाहिए उद्योगों में इसके बस का उपयोग करते हुए तथा बे फिल्टर तथा कुल आइडल टैंक निर्मित किया जाना उचित समाधान है
  • ऊर्जा के गैर परंपरागत स्रोत जैसे सौर ऊर्जा पवन ऊर्जा को अधिकाधिक बढ़ावा दिया जाना चाहिए
  • स्वचालित वाहनों की समय-समय पर प्रदूषण जांच कराई जानी चाहिए तथा व्यक्तिगत वाहनों के प्रयोग को कम से कम किया जाना चाहिए
  • विश्व भर में अम्लीय वर्षा के दुष्प्रभावों के बारे में लोगों को सजग करना चाहिए
  • पेयजल स्रोतों पर अम्लीय वर्षा के हुए दुष्प्रभाव को कम करने के लिए उचित प्रक्रिया से जल शोधन किया जाना चाहिए