Wednesday 29 May 2019

हिंदुओं के प्रमुख त्योहार Festivals of hindus

                          विश्व में हिंदुओं के प्रमुख त्यौहार














                              दीपावली     










  1.    यह त्योहार हिंदुओं का सबसे प्रमुख त्योहार माना जाता है संपूर्ण विश्व में यह त्योहार कार्तिक अमावस्या को भगवान श्री राम के पुन अयोध्या लौटने के उपलक्ष में मनाया जाता है
                               


                               होली      







    यह त्योहार फाल्गुन पूर्णिमा को मनाया जाता है इस त्योहार को भक्त पहलाद की स्मृति में संपूर्ण भारतवर्ष में अलग-अलग रूपों में मनाया जाता है राजस्थान के करौली जिले में इसे लठमार होली के रूप में तो कहीं कोड़ा मार तथा पत्थर मार होली के रूप में मनाया जाता ह                                                 

                           महाशिवरात्रि     


  1. भगवान शिव की स्मृति में इस त्योहार को फाल्गुन कृष्ण तेरस को मनाया जाता है


  2.                                धुलनडी      







  1. इस त्योहार को रंगों का त्योहार कहा जाता है चैत्र कृष्ण एकम को यह त्योहार मनाया जाता है विभिन्न रंगों से इस त्योहार के दिन खेला जाता है
  2.                           बसंत पंचमी   









  1.   माघ शुक्ल पंचमी को ऋतुराज बसंत के आगमन के उपलक्ष में इस दिन सरस्वती मां की पूजा करते हुए इस त्योहार को मनाया जाता है
  2.                          मकर सक्रांति   









  1.    14 जनवरी के दिन इस त्योहार को मनाया जाता है इस दिन सूर्य की पूजा कर दान पुण्य का कर्म किया जाता है जयपुर में 14 जनवरी के दिन गलताजी नामक धार्मिक सरोवर पर मेला भरता है
  2.                          देवउठनी ग्यारस  



  1.     कार्तिक शुक्ल एकादशी को इस त्योहार को मनाया जाता है इ
  2. स दिन भगवान विष्णु का विवाह तुलसी से करते हैं इसी दिन देवता 4  माह से सौकर उठते हैं और मांगलिक कार्यों की शुरुआत होती है इसीलिए इसे देव उठनी ग्यारस कहते हैं इसका दूसरा नाम प्रबोधिनी ग्यारस भी कहते है

  3.                          भैया दूज    



  4.     कार्तिक शुक्ल द्वितीया को भाई बहन के त्योहार के रूप में से मनाया जाता है इसे यम द्वितीया भी कहते हैं
  5.                      गोवर्धन पूजा  


  6.      कार्तिक शुक्ला प्रतिपदा को यह त्योहार मनाया जाता है इस त्यौहार का दूसरा नाम अंकूट भी है
  7.                          धनतेरस    




   कार्तिक प्रश्न तेरस को यह त्योहार धन की देवी लक्ष्मी की पूजा करते हुए मनाया जाता है इस त्यौहार के दिन नए बर्तन वगैरह खरीदना शुभ माना जाता है
        करवा चौथ 


  1.   कार्तिक कृष्ण चतुर्थी को सुहागन स्त्रियां अपने पति की दीर्घायु के लिए व्रत करते हुए इस दिन सायंकाल चंद्रमा के उदय तक चंद्रमा को अर्घ देकर इस व्रत की समाप्ति करती है
  2.                         शरद पूर्णिमा    
  1. इस दिन चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है इसलिए आश्विन महीने की पूर्णिमा को यह शरद पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है
  2.                              दशहरा 
     

अश्विन शुक्ल दशमी को बुराई पर अच्छाई की जीत के उपलक्ष में  श्री राम की रावण पर जीत के उपलक्ष में मनाया जाता है भारतवर्ष में राजस्थान के कोटा शहर का दशहरा मेला काफी प्रसिद्ध है इसके ने रावण का दहन किया जाता है
  1.                          दुर्गाष्टमी     
  2.  अश्विन शुक्ल अष्टमी को इस दिन मां दुर्गा की पूजा की जाती है
  3.                             नवरात्र        
  4. अश्विन शुक्ल एकम से छठ तक मां दुर्गा की पूजा करते हुए नो कुंवारी कन्याओं को भोजन करवाया जाता है इसे शारदीय नवरात्र भी कहते हैं
  5.                             ऋषि पंचमी 
         
  6. भाद्रपद शुक्ल पंचमी को इस दिन भारत के महान ऋषि यों की याद में यह त्योहार मनाया जाता है इस दिन गंगा में स्नान करने का विशेष महत्व है
  7.                         गणेश चतुर्थी 
         
  8. भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को भगवान श्री गणेश के जन्म दिवस के रूप में यह त्योहार महाराष्ट्र में तथा पूरे भारतवर्ष में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है
  9.                               कृष्ण जन्माष्टमी     







  1. भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को भगवान श्री राम के जन्म दिवस के रूप में कृष्ण जन्माष्टमी मनाया जाता है
  2.                               रक्षाबंधन   
     
  3. श्रावण की पूर्णिमा को यह भाई बहन का त्यौहार बड़े ही धूमधाम से संपूर्ण भारतवर्ष में मनाया जाता है इस दिन बहन अपने भाई की कलाई पर राखी बांधकर उसकी दीर्घायु की कामना करती है
  4.                              छोटी तीज     

  5.  श्रावण शुक्ल तृतीया को यह त्योहार मनाया जाता है जैसे सावन की तीज भी कहते हैं  यह त्योहार पार्वती के प्रति क रूप में मनाया जाता है
  6.                              नाग पंचमी     
  7.  श्रावण कृष्ण पंचमी के दिन नागों की पूजा करते हुए इस त्यौहार को मनाया जाता है हिंदू संस्कृति में नागों की विशेष महत्ता बताई जाती है
  8.                               गुरु पुर्णिमा   

  9.   आषाढ़ की पूर्णिमा के दिन गुरु की विशेष महत्ता को देखते हुए इस त्योहार को गुरु दक्षिणा देते हुए तथा गुरु की पूजा करते हुए मनाया जाता है
  10.                              अक्षय तृतीया     
  11. वैशाख शुक्ल तृतीया के दिन इस त्योहार को आखातीज के नाम से भी मनाया जाता है इस दिन किसान अपने साथ अन्य एवं हल की पूजा करते हैं तथा राजस्थान में इस दिन विवाह के लिए अबूझ सावा माना जाता है इस दिन से सतयुग तथा त्रेता युग का आरंभ माना जाता है
  12.                            रामनवमी
           चैत्र शुक्ल नवमी को भगवान श्री राम के जन्म दिवस के रूप में यह त्योहार मनाया जाता है
  13.                                   गणगौर       
  14. चैत्र शुक्ल तृतीया को सुहागिन स्त्रियां शिव पार्वती की पूजा करती हुई गणगौर उत्सव को बड़े ही धूमधाम से मनाती है इस दिन गणगौर पार्वती के सूचक के रूप में पार्वती की पूजा की जाती है यह त्योहार विशेष थ राजस्थान राज्य में मनाया जाता है
  15.                               नव वर्ष     
  1.  चैत्र शुक्ल एकम को नव वर्ष के रूप में संपूर्ण भारत में बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है इस दिन विक्रम संवत का नव वर्ष प्रारंभ होता है










Tuesday 28 May 2019

राजस्थान प्रदेश की प्रमुख जनजातियां

             राजस्थान राज्य की प्रमुख 8 जनजातियां

         



                                     मीणा

राजस्थान में सर्वाधिक मीणा जनजाति उदयपुर एवं जयपुर जिले में निवास करती है जो कि शिक्षा और जनसंख्या के हिसाब से राजस्थान की प्रमुख जनजातियों में सर्वोत्तम स्थान पर है मीणाओं को राजस्थान के प्राचीनतम निवासियों में से माना जाता है मीणा शब्द का अर्थ मछली से है मीणाओं की मान्यताओं के अनुसार इनकी उत्पत्ति भगवान मीन से हुई










2011 की जनगणना के अनुसार मीणा जनजाति की जनसंख्या जयपुर जिले में 467364 तथा उदयपुर जिले में 717696 तथा जैसलमेर जिले में 405 एवं बाड़मेर जिले में 1605 थी इनका गुरु मुनी मगर को माना जाता है इनके वहां पंचायत में मुखिया को पटेल नाम से संबोधित किया जाता है इनके प्रमुख देवता को बुज कहा जाता है यह लोग अपने रहने की जगह को टापरा कहते हैं इन का पवित्र ग्रंथ मीन पुराण है मीणाओं का प्रयागराज सवाई माधोपुर में रामेश्वर घाट के नाम से स्थित है इनमें विवाह प्रथा तीन तरह की होती है जिन्हें क्रमश ब्रह्म  गंधर्व और राक्षस कहां जाता है इनकी पंचायत को 84 कहते हैं मीणा जाति मुख्य थे दो प्रकार की होती हैं एक जमीदार एवं दूसरी चौकीदार भागों में विभक्त होती है एक तीसरे प्रकार की परिहार मीणा जाति टोंक एवं भीलवाड़ा एवं बुंदी मैं पाई जाती है


भील





भील जनजाति मीणा जनजाति के बाद राजस्थान की सबसे बड़ी जनजाति है भील जनजाति की सर्वाधिक जनसंख्या बांसवाड़ा और डूंगरपुर जिले में निवास करती है इस जनजाति को राज्य की सबसे प्राचीनतम जनजाति माना जाता है भील शब्द की उत्पत्ति द्रविड़ भाषा के शब्द बिल से हुई मानी जाती है जिसका अर्थ तीर चलाना होता है और भील जनजाति तीर चलाने में माहिर मानी जाती है क्योंकि यह जनजाति शिकार पसंद जनजाति है यह जनजाति अपने आप को भगवान शिव का वंशज मानती है यह जनजाति पूर्णता खेती और पशुपालन पर निर्भर है शिक्षा की दर इस जनजाति में न्यूनतम पाई जाती है 2011 की जनगणना के अनुसार भील जनजाति की सर्वाधिक जनसंख्या बांसवाड़ा डूंगरपुर में पाई जाती है जनगणना के अनुसार बांसवाड़ा में तेरा लाख 39 हजार 679 तथा डूंगरपुर जिले में 686681 तथा धौलपुर जिले में 28 एवं झुंझुनू जिले में 64 भील पाए जाते हैं भीलों का प्रसिद्ध लोक गीत हमसीढो है  भील जनजाति के प्रमुख मेले घोटिया अंबा मेला बांसवाड़ा तथा बेणेश्वर मेला डूंगरपुर है


गरासिया


गरासिया जनजाति सर्वाधिक सिरोही जिले में आबू रोड के आस पास तथा उदयपुर जिले में निवास करती है कर्नल जेम्स टॉड के अनुसार गरासिया शब्द की उत्पत्ति गवास से हुई है जिसका अर्थ नौकर होता है यह एकमात्र ऐसी जनजाति है जिसमें प्रेम विवाह प्रचलित है क्योंकि इस जनजाति में अपना वर या साथी चुनने के लिए मेलों का आयोजन किया जाता है क्योंकि इस जनजाति के लोग अपना जीवन साथी मेलों में चुनते हैं इस जनजाति में मोर विवाह आटा साटा विवाह पहरावना विवाह शादी विवाह पद्धतियां प्रचलित है 2011 की जनगणना के अनुसार गरासिया जनजाति सिरोही उदयपुर धौलपुर करौली सवाई माधोपुर दोसा टोंक तथा बूंदी में निवास करती है 2011 की जनगणना के अनुसार इन की कुल जनसंख्या 156422 है

 सहरिया



सहरिया जनजाति राजस्थान के सर्वाधिक पिछड़ी हुई जनजाति मानी जाती है इस जनजाति को आदिम जनजाति कहा जाता है यह राजस्थान के 12 जिले में किशनगढ़ और शाहाबाद तहसील में सर्वाधिक रूप में निवास करती है इनकी सर्वोच्च पंचायत संगठन को चौरसिया पंच कहते हैं यह अपने घर को गोपना नाम से संबोधित करते हैं इन के मुख्य देवता श्री तेजाजी महाराज हैं इन की कुलदेवी कोडिया नाम से जानी जाती है इनके मुख्य मेले बारा जिले में सीतामढ़ी और कपिलधारा के नाम से लगते हैं जिसे सहरिया कुंभ जितना महत्व देते हैं 2011 की जनगणना के अनुसार सहरिया जाति  बारा जिला में 108520 एवं कोटा में 1447 तो दोसा नागौर बाड़मेर जालौर भीलवाड़ा राजसमंद मैं इनकी जनसंख्या शून्य है


 डामोर



यह जनजाति सबसे ज्यादा डूंगरपुर जिले की सीमलवाडा ग्राम पंचायत में निवास करती है डूंगरपुर के अलावा इनकी जनसंख्या बांसवाड़ा में भी है इनमें पुरुष भी स्त्रियों के समान गहने पहनते हैं इनमें गुप्त विवाह नहीं किया जाता इन के प्रमुख मेले डूंगरपुर जिले में ग्यारस की तिथि को रेवाड़ी मेला तथा गुजरात के पंचमहल क्षेत्र में छैला बाबू जी का मेला लगता है इनके गांव के मुखिया को मुखी नाम से बुलाया जाता है 2011 की जनगणना के अनुसार डामोर जनजाति की डूंगरपुर जिले में 56000 352 तथा बांसवाड़ा जिले में 22637 जनसंख्या पाई जाती है




कथौङी


कटोरी जनजाति मुख्यतः महाराष्ट्र की जनजाति है राजस्थान में यह लोग डूंगरपुर तथा उदयपुर जिले में निवास करते हैं 2011 की जनगणना के अनुसार कटोरी जनजाति की जनसंख्या उदयपुर जिले में 2481 है तथा डूंगरपुर जिले में 603 है इस जनजाति में शराब का प्रचलन बहुत पाया जाता है इनका मुख्य कार्य खेर के पौधे से देसी हांडी प्रणाली से कथा तैयार करना है यह अपने नेता को नायक नाम से संबोधित करते हैं इसके साथ ही यह जनजाति है महा सारी भी है इस जनजाति का पहनावा मराठी पहनावे के अनुसार स्त्रियां साड़ी पहनती है


कंजर




यह जनजाति किसी एक स्थान पर स्थाई रूप से निवास नहीं करती है यह जनजाति प्राय घुमक्कड़ जनजातियों की श्रेणी में आती है कंजर जाति सर्वाधिक कोटा जिले में पाई जाती है किस जनजाति में एक परंपरा है की मरे हुए व्यक्ति के मुंह में शराब उड़े ली जाती है यह लोग महा सारी भोजन भी करते हैं शिकार से पहले यह अपने देवता से आशीर्वाद मांगते हैं जिसे इनकी भाषा में पाती मांगना कहते हैं यह लोग अपने निवास स्थान पर दरवाजा नहीं लगाते यह अपने मुखिया को पटेल नाम से संबोधित करते हैं इस जनजाति की महिलाएं काफी सुंदर होती है


इस जनजाति का स्थाई निवास स्थान नहीं होने के कारण है इसकी जनसंख्या के बारे में कोई सटीक अनुमान अभी तक नहीं लगाया जा सका है


 सांसी

इस जनजाति की उत्पत्ति सांस मल नामक व्यक्ति से मानी जाती है यह जनजाति दो भागों में बंटी हुई है पहली बीजा तथा दूसरी  माला यह जनजाति अपने हरिजन जनजाति से उच्च कोटि की जाति मानते हैं इस जनजाति के सर्वाधिक जनसंख्या भरतपुर जिले में पाई जाती है यह लोग चोरी को अपराध नहीं मानते बाकी सभी समाजों की तरह इस समाज में भी विधवा विवाह का प्रचलन नहीं

 है


इस प्रकार राजस्थान राज्य में अनेक सभ्य समाजों के साथ की जनजातियां भी अपने पुराने तौर-तरीकों से हैं अपना जीवन व्यापन करती है जोकि अभी तक आधुनिक सभ्यता स्वराज यूनिक विज्ञान से दूर कहीं अपनी ही जिंदगी तलाश रही है विभिन्न सरकारों द्वारा समय-समय पर इन जनजातियों को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने का प्रयत्न किया गया लेकिन यह लोग अपनी मूल संस्कृति और रहन-सहन से कोई समझौता नहीं करना चाहते

Monday 27 May 2019

राजस्थान राज्य की सभ्यता एवं संस्कृति

                          राजस्थान के प्रमुख लोक देवता


             

  1.                                 श्री तेजाजी महाराज    
                यह राजस्थान के सर्वाधिक महत्वपूर्ण लोक देवता    माने जाते हैं इनका जन्म धोलिया नक्षत्र में नागौर जिले के गांव खरनाल में विक्रम संवत 1130 कौ हुआ था                         



  1.  श्री तेजाजी महाराज की पत्नी का नाम पेमल था इनके पिता का नाम ताहर देवजी था इनकी माता का नाम रामकुवरी था इन्हें सांपों का देवता या काला और बाला का देवता या कृषि कार्यों का उप कारक देवता के रूप में जाना जाता है इन्होंने लाचा गुजरी की गायों को छुड़ाने का उपकार कार्य के लिए जाना जाता है इनका वीरगति स्थल अजमेर जिले की किशनगढ़ तहसील के सुरसुरा गांव है विक्रम संवत 1160 को श्री तेजाजी महाराज वीरगति को प्राप्त हुए


                            श्री रामदेव जी महाराज                             
                          
  श्री रामदेव जी महाराज पंच पीरों में से एक पीर है इन्हें विष्णु का अवतार कहा जाता है इनका जन्म शिव तहसील जिला बाड़मेर के तोमर राजवंश में हुआ था उनके पिता का नाम श्री अजमाल जीइनके माता जी का नाम  मैणादे था   इनकी पत्नी का नाम नेतल दे था इनके बड़ा भाई का नाम वीरमदेव था इन के गुरु का नाम बालीनाथ था इनके घोड़े को नीला घोड़ा कहा जाता था इन का मंदिर देवरा कहलाता है डाली बाई इनकी धर्म बहन थी इन का मंदिर जो की समाधि है और रामदेवरा जैसलमेर जिले में स्थित है यहां पर भाद्रपद शुक्ल दूज से एकादशी तक मेला लगता है
                        

 श्री पाबूजी महाराज
          


 श्री पाबूजी महाराज को पंच पीरों में से एक तीर माना जाता है इनको गौ रक्षक देवता माना जाता है इन्हें लक्ष्मण का अवतार कहा जाता है इसके साथ इन्हें ऊटो का देवता भी कहा जाता है इनका जन्म  कौलु गाव मै हुआ इनके पिता का नाम धाधलजी राठौड़ था इनकी माता का नाम कमला दे और पत्नी का नाम फूलमती था मारवाड़ में सर्वप्रथमऊंट लाने का श्रेय इनको ही दिया जाता है यह रेबारी जाति के लोक देवता माने जाते हैं इनकी फड़ राजस्थान में काफी लोकप्रिय है पाबूजी ने देवल चारणी की गायों को अपने बहनोई जिजराव खींची से छुड़ाते हुए अपने प्राणों का बलिदान किया जहां प्रतिवर्ष चैत्र की अमावस्या को
 मेला भरता है



भगवान श्री देवनारायण

      
 भगवान श्री देवनारायण के बचपन का नाम उदयसिंह था यह गुर्जर जाति से आते हैं इन्हें विष्णु का अवतार कहा जाता है इसके साथ ही इन्हें आयुर्वेद का ज्ञाता भी कहा जाता है इनका जन्म मालासेरी गांव आसींद तहसील जिला भीलवाड़ा मैं हुआ था इनके पिता का नाम सवाई भोज एवं माता का नाम सेडु था इनका इन का घोड़ा लीलाधर कहलाता है इन की पत्नी का नाम पीपदे था इनका मुख्य मंदिर खारी नदी के किनारे आसींद में स्थित है इनकी मृत्यु भिनाय तहसील जिला अजमेर में हुई थी जहां उनकी मूर्ति की जगह पर बड़ी ईटों की पूजा नीम की पत्तियों से कर छाछ राबड़ी का प्रसाद चढ़ाया जाता है प्रतिवर्ष इन का मेला भाद्रपद शुक्ल सप्तमी को भरता है इनका वाद यंत्र को जंतर कहा जाता है इनकी भी फड़ पढ़ी जाती है

श्री मल्लीनाथ जी



श्री मल्लीनाथ जी का जन्म मारवाड़ में हुआ था इनके पिता का नाम राव  तीडाजी था इनकी माता का नाम जीणादे था इनके नाम पर ही बाड़मेर क्षेत्र का नाम मालाणी क्षेत्र पड़ा इन्होंने लोनी नदी के तट पर तिलवाड़ा नामक स्थान पर समाधि ली मल्लिनाथ जी ने मालवा के सूबेदार निजामुद्दीन की सेना को युद्ध में पराजित किया था इन का मेला चैत्र शुक्ल एकादशी को पशु मेले के रूप में लगता है जिसे राजस्थान का सबसे पुराना पशु मेला कहा जाता है इन का मंदिर लूनी नदी के तट पर बना हुआ है जिस स्थान का नाम तिलवाड़ा है


श्री मांगलिया  मेहाजी महाराज


श्री मांग लिया जी कमरिया पंथ से दीक्षित थे इनका मुख्य मंदिर  बापणी जिला जोधपुर स्थित है यह जैसलमेर के राजा की फौज की तरफ से लड़ते हुए शहीद हुए थे  भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को इनका मेला भरता है इन के घोड़े का नाम किरङ काबरा था


Sunday 26 May 2019

ओम शब्द उच्चारण के शारीरिक मानसिक और आध्यात्मिक लाभ

                       
                          ओम शब्द का महत्व
भारतीय संस्कृति और सनातन सभ्यता के अनुसार ओम शब्द सृष्टि का मूल शब्द है वेद और पुराणों के अनुसार सृष्टि की रचना के समय अर्थात जब इस पृथ्वी पर जीव का विकास और रचना हुई उससे पहले एक महा ध्वनि उत्पन्न हुई जोकि ओम है ओम शब्द की महिमा हिंदू धर्म ग्रंथ वेद और पुराणों में वर्णन की गई है वेदों के अनुसार ओम शब्द अध्यात्म और धर्म साधना का मूल मंत्र है ओम चारों वेद और 18 पुराणों का प्रवेश द्वार है गीता के अनुसार भ्रम की साधना के लिए एक संपूर्ण अक्सर है और महर्षि पतंजलि के अनुसार ओम ईश्वर का वाचक शब्द है गुरु नानक के अनुसार ओम परम सच्चे से जोड़ने का मूल मंत्र है भगवान महावीर के अनुसार ओम नवकार मंत्र के 5 पदों की वंदना का सार सूत्र है ओम 3 अक्षरों से मिलकर बना है अ का अर्थ है उत्पन्न होना उ काअर्थ है ऊपर उठना और म का अर्थ है मौन हो जाना अर्थात ब्रह्मलीन हो जाना जिसे मोक्ष हो जाना भी कहते हैं

                    ओम का वैज्ञानिक आधार

ओम बड़ा वैज्ञानिक और आध्यात्मिक शब्द है इसके उच्चारण से पैदा होने वाली तरंगें हमें कई प्रकार के शारीरिक मानसिक और आध्यात्मिक लाभ प्रदान करती है

                       
                            ओम की साधना
                         
  ओम शब्द की साधना तीन चरण में की जाती है

  1. नाद
  2. जाप
 3 ध्यान

             ओम शब्द के नाद जाप  ध्यान के लाभ

  1.  तनाव मैं लाभ . ओम शरीर के विषैले तत्वों को दूर करता है तनाव के कारण पैदा होने वाला केमिकल इससे नियंत्रित होता है
  2. घबराहट में लाभकारी.  अगर आपको घबराहट या डर होता है तो ओम का उच्चारण करना सबसे उत्तम है भीतर काआत्मविश्वास जगाने के लिए ओम विशेष सहयोगी हैं
  3. अ निंद्रा में लाभकारी .   रात को सोते समय ओम नाम का ध्यान करने से नींद अच्छी आती है
  4. एकाग्रता बढ़ाने में लाभकारी.  ओम नाम का जाप करने से मन और बुद्धि दोनों मजबूत होते हैं
  5. पर्यावरण के अनुकूल ध्वनि .  ओम का जाप करने से पर्यावरण शुद्ध होता है क्योंकि इसकी ताकतवर तरंग है पर्यावरण में मौजूद हानिकारक और दूषित जीवाणुओं को नष्ट करती है क्योंकि ओम की ध्वनि  अद्भुत है
  6. ओम का उच्चारण करने से शरीर की थकान मिटती है तथा अध्यात्म की ओर मानव का मन अग्रसर होता है तथा शरीर मैं स्फूर्ति का संचार होता है
ओम और परमात्मा का संबंध. ओम अपनी उच्च अवस्था में हमें ईश्वर की चेतना के साथ मिलने में खास भूमिका निभाता है योगी मनुष्य ओम का ध्यान करते हुए सांसारिक ट्रकों के साथ मोक्ष सुख को भी प्राप्त करते हैं जो संसार और मोक्ष दोनों का सुख प्रदान करता है यह अद्भुत अक्सर या शब्द ओम है ओम का नियमित अभ्यास करने से बड़े सकारात्मक प्रभाव मनुष्य जीवन में देखे गए हैं                                             ओम के बारे में लिखी गई संपूर्ण जानकारी वैज्ञानिक आधार पर सही पाई गई है अतः यह जानकारी जोकि पूर्णता वेद पुराणों एवं उनके बाद समय-समय पर योगियों ऋषिि यों और आधुनिक समय के बुद्धिजीवियों एवं विद्वानों और वैज्ञानिकों द्वारा सही पाई गई है