Tuesday 28 May 2019

राजस्थान प्रदेश की प्रमुख जनजातियां

             राजस्थान राज्य की प्रमुख 8 जनजातियां

         



                                     मीणा

राजस्थान में सर्वाधिक मीणा जनजाति उदयपुर एवं जयपुर जिले में निवास करती है जो कि शिक्षा और जनसंख्या के हिसाब से राजस्थान की प्रमुख जनजातियों में सर्वोत्तम स्थान पर है मीणाओं को राजस्थान के प्राचीनतम निवासियों में से माना जाता है मीणा शब्द का अर्थ मछली से है मीणाओं की मान्यताओं के अनुसार इनकी उत्पत्ति भगवान मीन से हुई










2011 की जनगणना के अनुसार मीणा जनजाति की जनसंख्या जयपुर जिले में 467364 तथा उदयपुर जिले में 717696 तथा जैसलमेर जिले में 405 एवं बाड़मेर जिले में 1605 थी इनका गुरु मुनी मगर को माना जाता है इनके वहां पंचायत में मुखिया को पटेल नाम से संबोधित किया जाता है इनके प्रमुख देवता को बुज कहा जाता है यह लोग अपने रहने की जगह को टापरा कहते हैं इन का पवित्र ग्रंथ मीन पुराण है मीणाओं का प्रयागराज सवाई माधोपुर में रामेश्वर घाट के नाम से स्थित है इनमें विवाह प्रथा तीन तरह की होती है जिन्हें क्रमश ब्रह्म  गंधर्व और राक्षस कहां जाता है इनकी पंचायत को 84 कहते हैं मीणा जाति मुख्य थे दो प्रकार की होती हैं एक जमीदार एवं दूसरी चौकीदार भागों में विभक्त होती है एक तीसरे प्रकार की परिहार मीणा जाति टोंक एवं भीलवाड़ा एवं बुंदी मैं पाई जाती है


भील





भील जनजाति मीणा जनजाति के बाद राजस्थान की सबसे बड़ी जनजाति है भील जनजाति की सर्वाधिक जनसंख्या बांसवाड़ा और डूंगरपुर जिले में निवास करती है इस जनजाति को राज्य की सबसे प्राचीनतम जनजाति माना जाता है भील शब्द की उत्पत्ति द्रविड़ भाषा के शब्द बिल से हुई मानी जाती है जिसका अर्थ तीर चलाना होता है और भील जनजाति तीर चलाने में माहिर मानी जाती है क्योंकि यह जनजाति शिकार पसंद जनजाति है यह जनजाति अपने आप को भगवान शिव का वंशज मानती है यह जनजाति पूर्णता खेती और पशुपालन पर निर्भर है शिक्षा की दर इस जनजाति में न्यूनतम पाई जाती है 2011 की जनगणना के अनुसार भील जनजाति की सर्वाधिक जनसंख्या बांसवाड़ा डूंगरपुर में पाई जाती है जनगणना के अनुसार बांसवाड़ा में तेरा लाख 39 हजार 679 तथा डूंगरपुर जिले में 686681 तथा धौलपुर जिले में 28 एवं झुंझुनू जिले में 64 भील पाए जाते हैं भीलों का प्रसिद्ध लोक गीत हमसीढो है  भील जनजाति के प्रमुख मेले घोटिया अंबा मेला बांसवाड़ा तथा बेणेश्वर मेला डूंगरपुर है


गरासिया


गरासिया जनजाति सर्वाधिक सिरोही जिले में आबू रोड के आस पास तथा उदयपुर जिले में निवास करती है कर्नल जेम्स टॉड के अनुसार गरासिया शब्द की उत्पत्ति गवास से हुई है जिसका अर्थ नौकर होता है यह एकमात्र ऐसी जनजाति है जिसमें प्रेम विवाह प्रचलित है क्योंकि इस जनजाति में अपना वर या साथी चुनने के लिए मेलों का आयोजन किया जाता है क्योंकि इस जनजाति के लोग अपना जीवन साथी मेलों में चुनते हैं इस जनजाति में मोर विवाह आटा साटा विवाह पहरावना विवाह शादी विवाह पद्धतियां प्रचलित है 2011 की जनगणना के अनुसार गरासिया जनजाति सिरोही उदयपुर धौलपुर करौली सवाई माधोपुर दोसा टोंक तथा बूंदी में निवास करती है 2011 की जनगणना के अनुसार इन की कुल जनसंख्या 156422 है

 सहरिया



सहरिया जनजाति राजस्थान के सर्वाधिक पिछड़ी हुई जनजाति मानी जाती है इस जनजाति को आदिम जनजाति कहा जाता है यह राजस्थान के 12 जिले में किशनगढ़ और शाहाबाद तहसील में सर्वाधिक रूप में निवास करती है इनकी सर्वोच्च पंचायत संगठन को चौरसिया पंच कहते हैं यह अपने घर को गोपना नाम से संबोधित करते हैं इन के मुख्य देवता श्री तेजाजी महाराज हैं इन की कुलदेवी कोडिया नाम से जानी जाती है इनके मुख्य मेले बारा जिले में सीतामढ़ी और कपिलधारा के नाम से लगते हैं जिसे सहरिया कुंभ जितना महत्व देते हैं 2011 की जनगणना के अनुसार सहरिया जाति  बारा जिला में 108520 एवं कोटा में 1447 तो दोसा नागौर बाड़मेर जालौर भीलवाड़ा राजसमंद मैं इनकी जनसंख्या शून्य है


 डामोर



यह जनजाति सबसे ज्यादा डूंगरपुर जिले की सीमलवाडा ग्राम पंचायत में निवास करती है डूंगरपुर के अलावा इनकी जनसंख्या बांसवाड़ा में भी है इनमें पुरुष भी स्त्रियों के समान गहने पहनते हैं इनमें गुप्त विवाह नहीं किया जाता इन के प्रमुख मेले डूंगरपुर जिले में ग्यारस की तिथि को रेवाड़ी मेला तथा गुजरात के पंचमहल क्षेत्र में छैला बाबू जी का मेला लगता है इनके गांव के मुखिया को मुखी नाम से बुलाया जाता है 2011 की जनगणना के अनुसार डामोर जनजाति की डूंगरपुर जिले में 56000 352 तथा बांसवाड़ा जिले में 22637 जनसंख्या पाई जाती है




कथौङी


कटोरी जनजाति मुख्यतः महाराष्ट्र की जनजाति है राजस्थान में यह लोग डूंगरपुर तथा उदयपुर जिले में निवास करते हैं 2011 की जनगणना के अनुसार कटोरी जनजाति की जनसंख्या उदयपुर जिले में 2481 है तथा डूंगरपुर जिले में 603 है इस जनजाति में शराब का प्रचलन बहुत पाया जाता है इनका मुख्य कार्य खेर के पौधे से देसी हांडी प्रणाली से कथा तैयार करना है यह अपने नेता को नायक नाम से संबोधित करते हैं इसके साथ ही यह जनजाति है महा सारी भी है इस जनजाति का पहनावा मराठी पहनावे के अनुसार स्त्रियां साड़ी पहनती है


कंजर




यह जनजाति किसी एक स्थान पर स्थाई रूप से निवास नहीं करती है यह जनजाति प्राय घुमक्कड़ जनजातियों की श्रेणी में आती है कंजर जाति सर्वाधिक कोटा जिले में पाई जाती है किस जनजाति में एक परंपरा है की मरे हुए व्यक्ति के मुंह में शराब उड़े ली जाती है यह लोग महा सारी भोजन भी करते हैं शिकार से पहले यह अपने देवता से आशीर्वाद मांगते हैं जिसे इनकी भाषा में पाती मांगना कहते हैं यह लोग अपने निवास स्थान पर दरवाजा नहीं लगाते यह अपने मुखिया को पटेल नाम से संबोधित करते हैं इस जनजाति की महिलाएं काफी सुंदर होती है


इस जनजाति का स्थाई निवास स्थान नहीं होने के कारण है इसकी जनसंख्या के बारे में कोई सटीक अनुमान अभी तक नहीं लगाया जा सका है


 सांसी

इस जनजाति की उत्पत्ति सांस मल नामक व्यक्ति से मानी जाती है यह जनजाति दो भागों में बंटी हुई है पहली बीजा तथा दूसरी  माला यह जनजाति अपने हरिजन जनजाति से उच्च कोटि की जाति मानते हैं इस जनजाति के सर्वाधिक जनसंख्या भरतपुर जिले में पाई जाती है यह लोग चोरी को अपराध नहीं मानते बाकी सभी समाजों की तरह इस समाज में भी विधवा विवाह का प्रचलन नहीं

 है


इस प्रकार राजस्थान राज्य में अनेक सभ्य समाजों के साथ की जनजातियां भी अपने पुराने तौर-तरीकों से हैं अपना जीवन व्यापन करती है जोकि अभी तक आधुनिक सभ्यता स्वराज यूनिक विज्ञान से दूर कहीं अपनी ही जिंदगी तलाश रही है विभिन्न सरकारों द्वारा समय-समय पर इन जनजातियों को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने का प्रयत्न किया गया लेकिन यह लोग अपनी मूल संस्कृति और रहन-सहन से कोई समझौता नहीं करना चाहते

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